विधानसभा-विधान परिषद की नियुक्तियों में हाई कोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश देने के बाद मची खलबली

लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने विधान परिषद की नियुक्तियों में बाहरी एजेंसी के चयन को लेकर सीबीआइ जांच के आदेश देने के बाद एक बार फिर विधानसभा व विधान परिषद में नियुक्तियों को लेकर सवाल उठने लगे हैं। यह पहला मौका नहीं है जब नियमों में मनमाने संशोधन कर नियुक्तियों पर सवाल उठ रहे हैं, इससे पहले भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं।

विधानसभा व विधान परिषद दोनों ही जगह पिछले तीन वर्षों में करीब 250 नियुक्तियां हुई हैं। उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय के बाद अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा व विधान परिषद सचिवालय में की गई नियुक्तियों को लेकर जांच होगी। यहां विधान परिषद सचिवालय ने तो नियमों में मनमाना संशोधन कर रिक्त पदों को भरने के लिए सरकारी के बजाय बाहरी एजेंसी का चयन कर भर्तियां कर ली हैं।

विधानसभा में भी भर्तियों में खूब भाई-भतीजावाद चला है। समीक्षा अधिकारी व सहायक समीक्षा अधिकारी सहित कुल 90 पदों के लिए भर्तियों का विज्ञापन निकाला था। वर्ष 2020-21 में हुई इन भर्तियों में कई ऐसे भी हैं जो मंत्रियों, नेताओं, अधिकारियों व पत्रकारों के बच्चे व रिश्तेदार हैं। भर्तियों के लिए चयनित अभ्यर्थियों के साथ ही प्रतीक्षा सूची भी बनाई गई, इसके जरिये भी रिक्त होते पदों पर भर्तियां की जाती रहीं।

इस तरह प्रतीक्षा सूची से भर्तियों पर भी सवाल उठते रहे हैं। पूर्व की सरकारों में भी इस तरह की भर्तियों में अनियमितता के मामले उठते रहे, लेकिन कोर्ट ने पहली बार अब सीबीआइ जांच के आदेश दिए हैं। जांच के आदेश के संबंध में विधान परिषद व विधानसभा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी कुछ भी बोलने से बचते रहे।

उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में भी भर्ती घोटाला सामने आ चुका है। वहां भी नियमों में मनमाने संशोधन कर 228 कर्मचारियों को नियुक्तियां प्रदान कर दी गई थीं। जांच में अनियमितता पाए जाने पर 228 कर्मियों को हटा दिया गया था। हटाए गए कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट भी गए थे किंतु उन्हें वहां से राहत नहीं मिली थी।

 

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