यूपी कैबिनेट का महत्वपूर्ण फैसला : पावर ऑफ अटार्नी पर अब देना होगा रजिस्ट्री की तरह स्टांप शुल्क

लखनऊ।  अचल संपत्ति के लिए किसी के नाम मुख्तारनामा (पावर ऑफ अटार्नी) करना अब आसान नहीं होगा। इस पर रजिस्ट्री की तरह से ही स्टांप शुल्क अदा करना होगा।  परिवार के सदस्यों को इससे मुक्त रखा गया है। यदि परिवार के सदस्य आपस में मुख्तारनामा करते हैं तो उन्हें पांच हजार रुपये अदा करने होंगे।  कैबिनेट की बैठक में इस अहम प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। इसे सरकार का बड़ा कदम माना जा रहा है।

स्टांप एवं पंजीयन विभाग के राज्यमंत्री  रवींद्र जायसवाल ने बताया कि मुख्तारनामों में हो रहे करापवंचन को रोकने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। परिवार से अलग किसी व्यक्ति को अचल संपत्ति बेचने का अधिकर देने के लिए मुख्तारनामा किया जाता है। हालांकि इसका पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है लेकिन विलेख की प्रमाणिकता के लिए लोग इसका पंजीकरण कराते हैं। इसमें तगड़ा खेल हो रहा था

नियामानुसार जहां पांच से कम लोगों के नाम मुख्तारनामा होता था वहां मात्र 50 रुपये का स्टांप शुल्क देय होता था। अब यह नहीं होगा। इसे रोकने के लिए सरकार ने कदम उठाया। अब ऐसे मुख्तारनामों में बैनामों की तरह ही संपत्ति के बाजार मूल्य के हिसाब से स्टांप शुल्क लगेगा। कैबिनेट के सामने रखे इस प्रस्ताव में दूसरे राज्यों का भी उदाहरण दिया गया। जैसे महाराष्ट्र मध्य प्रदेश और बिहार में यही व्यवस्था है। दिल्ली में पावर ऑफ अटार्नी पर 3 प्रतिशत स्टांप शुल्क लगता है।

परिवार के सदस्यों जैसे पिता, माता, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधु, पुत्री, दामाद, भाई, बहन, पौत्र, पौत्री, नाती, नातिन को परिवार का सदस्य माना गया है जिन्हें बाजार मूल्य पर स्टांप नहीं देना होगा। इसके लिए केवल पांच हजार रुपये शुल्क फिक्स किया गया है।

मुख्तारनामों के पंजीकरण की संख्या प्रदेश में लगातार बढ़ रही है। दरअसल भू संपत्ति की अवैध खरीद फरोख्त का ऐसा खेल प्रदेश में खेला गया कि सरकार को यह कदम उठाना पड़ा। खास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में यह खेल हो रहा था।

गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि जिलों में आलम यह था कि संपत्ति की खरीद फरोख्त के लिए एक दूसरे के नाम मुख्तारनामा कराया जाता था। मात्र 50 रुपये का स्टांप लगाकर यह काम होता था। उसके बाद संपत्ति को आगे बेच दिया जाता था। स्टांप मंत्री के मुताबिक पांच सालों में प्रदेश के निबंधन कार्यालयों में 102486 विलेख पंजीकृत कराए गए। गाजियाबाद में तो यह बड़ा खेल सामने पर कई अधिकारियों कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई। उत्तराखंड की सीमा से सटे जिलों में वहां के रीयल एस्टेट कारोबारी यही गड़बड़झाला कर रहे थे।

 

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