इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी : तलाक लिए बगैर लिव इन रिलेशनशिप महज एक व्यभिचारी रिश्ता

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना तलाक लिए लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला और उसके साथी को सुरक्षा देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा, तलाक लिए बगैर लिव इन रिलेशनशिप महज एक व्यभिचारी रिश्ता है। इसे अदालती संरक्षण नहीं दिया जा सकता। ऐसा करने से समाज में अराजकता पैदा हो जाएगी। कोर्ट ने याची जोड़े पर दो हजार का जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी।

यह फैसला न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने अलीगढ़ की मुस्लिम महिला और उसके लिव इन पार्टनर अविनाश की ओर से सुरक्षा की मांग वाली याचिका पर सुनाया। याचियों के वकील का कहना था कि महिला का निकाह राजू के साथ हुआ था, जिससे पांच वर्ष की बेटी भी है। राजू आदतन शराबी है। नशे में पत्नी के साथ मारपीट करता था। इसकी शिकायत के बावजूद घरवालों ने कोई कदम नहीं उठाया।

इसी कारण पांच साल की बेटी के साथ उसने अपनी मर्जी से पति का घर छोड़ दिया। वह अविनाश के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है। इस रिश्ते से खफा पति राजू से उन्हें जान का खतरा है। दलील का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा कि शादीशुदा महिला ने न तो पति से तलाक लिया है और न ही धर्म परिवर्तन कानून की धारा 8 और 9 की औपचारिकता ही पूरी की है।

कोर्ट ने कहा कि पति के हिंसक बर्ताव के कारण बिना तलाक लिए लिव इन रिलेशनशिप महज एक व्यभिचारी रिश्ता है, जो किसी कानून से समर्थित नहीं है। इस जोड़े को अदालत से संरक्षण और सुरक्षा मांगने का हक नहीं है। अदालत इस रिश्ते को मान्यता नहीं दे सकती। अवैध रिश्ते को संरक्षण देने से समाज में अराजकता पैदा हो जाएगी। कोर्ट ने दो हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए 15 दिनों में मध्यस्थता केंद्र में राशि जमा करने का निर्देश भी दिया।

 

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