एआई सेफ्टी के लिए भारत समेत 28 देश आए साथ, पहले अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्र पर हुआ हस्ताक्षर

नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जब मार्केट में आया तो इसके फायदे गिनाए जा रहे थे। कई एक्सपर्ट ने इतना तक कह दिया था कि एआई बहुत ही नायाब चीज है। इसकी मदद से महीनों के काम एक दिन में हो सकते हैं लेकिन अब यही एआई लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है। एआई के खतरों को रोकने के लिए अब 28 देश एक साथ आए हैं जिसमें भारत भी है

एआई को लेकर लंदन में पहला अंतरराष्ट्रीय एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन हुआ है जिसमें अमेरिका, भारत और चीन जैसे देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। इन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं। यह सम्मेलन एआई पर केंद्रित था, जिसे लेकर कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

यह सम्मेलन भले ही एआई के संभावित खतरों को लेकर था और इसमें अमेरिका भी शामिल था लेकिन अमेरिका की राय अलग है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने ब्रिटेन और अन्य देशों से एआई पर तेजी से आगे बढ़ने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि एआई पर काम होना चाहिए लेकिन कानूनी तौर पर टेक कंपनियों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता भी है।

इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, आयरलैंड, इस्राइल, इटली, जापान, केन्या, सऊदी अरब, नीदरलैंड, नाइजीरिया, फिलीपींस, कोरिया गणराज्य, रवांडा, सिंगापुर, स्पेन, स्विट्जरलैंड, तुर्की, यूक्रेन, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल थे।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा कि दुनिया को एआई जोखिमों के “पूर्ण स्पेक्ट्रम” को संबोधित करने के लिए अभी से कार्रवाई शुरू करने की जरूरत है, न कि केवल बड़े पैमाने पर साइबर हमलों या एआई-निर्मित जैव हथियारों जैसे अस्तित्व संबंधी खतरों को संबोधित करने के लिए।

उन्होंने आगे कहा कि डीपफेक वीडियो और फोटो बड़े खतरे पैदा कर रहे हैं। इसके जरिए किसी को धमकाया जा सकता है और उसे ब्लैकमेल भी किया जा सकता है। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें देखा गया है कि डीपफेक के कारण कई लोगों ने गलत फैसले लिए।

 

 

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