हमास-इस्राइल युद्ध के बाद यूएन पर क्यों उठे सवाल?

समय-समय पर यूएन अपनी सक्रियता, कार्य क्षमता, प्रभाविकता जैसे अनेक मुद्दों को लेकर कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है। आरोप लगाए जाते हैं कि यूएन केवल स्थायी सदस्यों के रणनीतिक हितों और राजनीतिक उद्देश्यों को साधता है।

सात अक्तूबर से हमास और इस्राइल आमने सामने है। इस संघर्ष में अभी तक 3700 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। दोनों ओर मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है। लोग अपना घरबार छोड़कर राहत कैम्पों में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं।

दरअसल, यूएन और डब्ल्यूएचओ का हमास के प्रति हमदर्दी दिखाने को लेकर यूएन में इस्राइली राजदूत गिलाद एर्दान ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा, ‘यूएन के अधिकारियों के पास आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे देश को फटकार लगाने की कोई विश्वसनीयता नहीं है। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी वैश्विक संस्था की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा किया गया था। ऐसे में हमें जानना चाहिए कि आखिर हमास-इस्राइल युद्ध के बाद यूएन पर सवाल क्यों उठे? लड़ाई शुरू होने के बाद यूएन और उसके संगठनों ने क्या कदम उठाए हैं? रूस-यूक्रेन संघर्ष में इसकी भूमिका पर आंच क्यों आई? यूएन की जिम्मेदारी होती क्या है? यह किसलिए बना था? क्या इतिहास में भी यूएन अपनी जिम्मेदारियों से चूका? आइये जानते हैं

युद्ध के बाद यूएन पर उठे सवाल ? 
दरअसल, मानवीय मामलों के अवर महासचिव और आपातकालीन राहत समन्वयक मार्टिन ग्रिफिथ्स ने एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था। इस पोस्ट में उन्होंने कहा था कि गाजा पर मौत का साया मंडरा रहा है। बिना पानी, बिजली, भोजन और दवा के हजारों लोग मर जाएंगे। यह बिल्कुल स्पष्ट है।

हालांकि, यूएन में इस्राइली राजदूत गिलाद एर्दान ने ग्रिफिथ्स की पोस्ट को लेकर आपत्ति जताई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी की पोस्ट पर पूछा कि जब हमास ने आतंकी सुरंगें खोदने और इस्राइलियों को निशाना बनाने वाले रॉकेट बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सारा धन खर्च कर दिया, तब आपका आक्रोश कहां था?

उन्होंने कहा, ‘जब हम बंधकों को छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उस समय संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के पास आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे देश को फटकार लगाने की कोई विश्वसनीयता या वैधता नहीं है। आपको शर्म आनी चाहिए।’

राजदूत ने कहा कि यदि आप सच में एक मानवीय संगठन के प्रमुख के रूप में काम करना चाहते हैं और लोगों का दर्द कम करना चाहते हैं तो शुरुआत हमास से सभी बंधकों को रिहा करने का आह्वान करके करें। यह फिलहाल सबसे जरूरी है।

संगठनों ने क्या कदम उठाए 
सात अक्तूबर को हमास के हमले के बाद आठ अक्तूबर को न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक हुई। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र ने गाजा पट्टी के नजदीक स्थित इस्राइली शहरों और आबादियों पर किए गए हमलों की कठोर निन्दा की। यूएन के शीर्ष अधिकारियों ने सभी पक्षों से आग्रह किया कि हिंसक टकराव को और भड़कने से रोकना होगा और आम नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित की जानी होगी।

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने वक्तव्य में आम नागरिकों पर हमले किए जाने और उनके अपने घरों में बंधक बना लिए जाने पर दुख जताया। उन्होंने बंधकों को जल्द से जल्द रिहा किए जाने की अपील की।

यूएन प्रमुख ने जोर देकर कहा कि हिंसा, इस टकराव का समाधान प्रदान नहीं कर सकती है और केवल बातचीत के जरिये ही दो-राष्ट्र समाधान और शान्ति को हासिल किया जा सकता है। यूएन प्रमुख के अनुसार, बड़े पैमाने पर टकराव से बचने के लिए सभी कूटनैतिक प्रयास किए जाने होंगे। अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून के अनुरूप, आम नागरिकों का सम्मान व सुरक्षा, सदैव सुनिश्चित की जानी होगी।

प्रभावित क्षेत्रों में चलाया राहत अभियान 
यूएन और इसकी तमाम एजेंसियों ने जानकारी दी है कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अनेक कर्मचारी अभी भी काम कर रहे हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कुछ सहयोगी भी काम में लगे हैं। हमारे कई लोग आश्रय स्थलों में लोगों की मदद कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के सहयोग से, वे उन्हें गद्दे, सोने की जगह, साफ पानी, भोजन आदि मुहैया करवा रहे हैं। वैश्विक एजेंसी ने कहा, ‘सभी काम कर रहे हैं। कुछ लोग तथ्य व आंकड़े एकत्र कर रहे हैं, कुछ कहानियां एकत्र कर रहे हैं, कुछ हमें विनाश के स्तर की जानकारी दे रहे हैं। हमारे कर्मचारी यथाशक्ति जो हो सके, कर रहे हैं।

यूएन का काम राहत बचाव ही ?
यूएएन और इसकी एजेंसियां लगातार संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में मदद पहुंचाने का दावा कर रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यूएन की जिम्मेदारी यही है तो शांति की पहल कौन करता है। दरअसल, पिछले साल फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद संयुक्त राष्ट्र, विशेषकर सुरक्षा परिषद, महासभा और महासचिव की भूमिका पर सभी तरह के सवाल खड़े कर दिए थे। इसके जवाब संयुक्त राष्ट्र चार्टर के गहराई से अध्ययन करने से मिलते हैं।

यूएन युद्ध रोक सकता है?
संयुक्त राष्ट्र संगठन के संस्थापक दस्तावेज ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ में सुरक्षा परिषद के कार्य और शक्तियां निर्धारित हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के समापन पर 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में इस पर हस्ताक्षर किए गए और 24 अक्तूबर 1945 को यह लागू हुआ। सुरक्षा परिषद 15 सदस्यों से बनी है जिसमें पांच स्थायी सीटें चीन, फ्रांस, रूसी संघ, ब्रिटेन और अमेरिका की हैं और 10 गैर-स्थायी सीटें हैं जो संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देशों के बीच चुनाव द्वारा घूमती हैं। सुरक्षा परिषद वह निकाय है जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी दी गई थी। यह शांति के लिए खतरे, शांति के उल्लंघन या आक्रमण का निर्धारण करने में अग्रणी भूमिका निभाता है। 1965 से पहले सुरक्षा परिषद में 11 सदस्य होते थे, जिनमें से छह अस्थायी होते थे। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 23(1) में संशोधन के बाद 15 सदस्यों का विस्तार हुआ। हालांकि अभी भी लगभग 60 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश ऐसे हैं जो कभी भी सुरक्षा परिषद में नहीं बैठे हैं, फिर भी संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य परिषद द्वारा अपनाए गए निर्णयों को स्वीकार करने और लागू करने के लिए चार्टर के अनुच्छेद 25 के तहत सहमत हैं। दूसरे शब्दों में, परिषद द्वारा की गई कार्रवाइयां संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी हैं।

युद्ध को रोकने के लिए यूएन क्या कर सकता है?
संकटों से निपटने के दौरान सुरक्षा परिषद कई कदम उठा सकती है। परिषद किसी विवाद के पक्षकारों से इसे शांतिपूर्ण तरीकों से निपटाने के लिए कह सकती है। यह विवादों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भेजने की सिफारिश भी कर सकती है।कुछ मामलों में सुरक्षा परिषद प्रतिबंध लगाने का सहारा ले सकती है। वहीं अंतिम उपाय के रूप में जब किसी विवाद को निपटाने के शांतिपूर्ण साधन समाप्त हो जाते हैं, तो सदस्य देशों गठबंधनों द्वारा बल के उपयोग को अधिकृत भी कर सकती है। पहली बार परिषद ने 1950 में कोरिया गणराज्य से उत्तर कोरियाई सेना की वापसी सुनिश्चित करने के लिए सैन्य कार्रवाई के तहत बल के उपयोग को मंजूरी दी थी।

‘वीटो पावर’ क्या है और इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है?
सुरक्षा परिषद में मतदान प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 द्वारा निर्देशित होती है। इसके मुताबिक, परिषद के प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट है।

किसी निर्णय को अपनाने के लिए नौ सदस्यों को पक्ष में मतदान करने की जरूरत होती है। अन्य सभी मामलों पर स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन या अमेरिका) में से किसी का भी नकारात्मक वोट परिषद द्वारा ठोस मामलों से जुड़े किसी भी मसौदा प्रस्ताव को अपनाने से रोक सकता है।

1946 के बाद से सभी पांच स्थायी सदस्यों ने विभिन्न मुद्दों पर किसी न किसी समय वीटो के अधिकार का प्रयोग किया है। आज तक लगभग 49 प्रतिशत वीटो यूएसएसआर और उसके बाद रूसी संघ द्वारा डाली गई थी। वहीं अमेरिका द्वारा 29 प्रतिशत, ब्रिटेन द्वारा 10 प्रतिशत, और चीन और फ्रांस द्वारा छह-छह प्रतिशत वीटो इस्तेमाल किए गए हैं।

सुरक्षा परिषद युद्ध रोकने में असमर्थ क्या विकल्प हैं?
यदि सुरक्षा परिषद स्थायी सदस्यों के बीच समन्वय की कमी के कारण कार्य करने में असमर्थ है, तो जिम्मदारी संयुक्त राष्ट्र महासभा के पास जाती है। महासभा अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या बहाल करने के लिए सामूहिक उपायों के लिए व्यापक संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के लिए सिफारिशें कर सकती है।

उदाहरण के लिए अक्सर सुरक्षा परिषद यह निर्धारित करती है कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान कब और कहां तैनात किया जाना चाहिए। ऐतिहासिक रूप से जब परिषद निर्णय लेने में असमर्थ रही है, तो महासभा ने ऐसा किया है। उदाहरण के लिए 1956 में महासभा ने मध्य पूर्व में प्रथम संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन बल (UNEFI) की स्थापना की।

इसके अलावा, सुरक्षा परिषद के नौ सदस्यों या महासभा के अधिकांश सदस्यों द्वारा अनुरोध किए जाने पर महासभा आपातकालीन विशेष सत्र में बैठक कर सकती है। अभी तक महासभा ने 11 आपातकालीन विशेष सत्र आयोजित किए हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद एक मार्च 2022 को आपातकालीन सत्र में बैठक करते हुए महासभा ने एक प्रस्ताव अपनाया। इसके द्वारा महासभा ने यूक्रेन के खिलाफ रूस के हमले की निंदा की और मांग की कि रूस तुरंत यूक्रेन के खिलाफ बल का उपयोग बंद कर दे। साथ ही कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर यूक्रेन के क्षेत्र से अपने सभी सैन्य बलों को पूरी तरह और बिना शर्त वापस ले ले।

हालांकि, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के उलट महासभा के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते हैं, जिसका अर्थ है कि देश उन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

26 अप्रैल को यूक्रेन में युद्ध को रोकने के लिए सुरक्षा परिषद द्वारा कार्रवाई की कमी की बढ़ती आलोचना के बीच, महासभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव अपनाया। इसमें परिषद के पांच स्थायी सदस्यों को वीटो के उपयोग को उचित ठहराने की आवश्यकता थी। प्रस्ताव में महासभा सदस्यों से सुरक्षा परिषद के एक या अधिक स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो करने के 10 कार्य दिवसों के भीतर बैठक करने का आह्वान किया गया, ताकि स्थिति पर बहस हो सके। जिस पर वीटो लगा दिया गया।

क्या संयुक्त राष्ट्र में किसी देश की सदस्यता रद्द की जा सकती है?
चार्टर का अनुच्छेद छह कहता है कि संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य जिसने चार्टर में निहित सिद्धांतों का लगातार उल्लंघन किया है, उसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा संगठन से निष्कासित किया जा सकता है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। वहीं अनुच्छेद पांच सदस्य देश के निलंबन का प्रावधान करता है। इसके मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य जिसके खिलाफ सुरक्षा परिषद द्वारा निवारक कार्रवाई की गई है, उसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा सदस्यता के अधिकारों और विशेषाधिकारों के प्रयोग से निलंबित किया जा सकता है। इन अधिकारों और विशेषाधिकारों का प्रयोग सुरक्षा परिषद द्वारा बहाल भी किया जा सकता है।

संगठन से किसी सदस्य देश का निलंबन या निष्कासन परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा किया जाता है। ऐसी सिफारिश के लिए सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के सहमति मत की आवश्यकता होती है। वहीं स्थायी परिषद सदस्यों को केवल संयुक्त राष्ट्र चार्टर के संशोधन के जरिए हटाया जा सकता है।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने अतीत में कुछ देशों के खिलाफ कदम उठाए हैं। ऐसा एक मामला रंगभेदी आंदोलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका से जुड़ा हुआ है। सुरक्षा परिषद ने 1963 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ स्वैच्छिक हथियार प्रतिबंध लगाए, जबकि महासभा ने 1970 से 1974 तक देश को मान्यता देने से इनकार कर दिया। इस प्रतिबंध के बाद दक्षिण अफ्रीका ने 1994 में रंगभेद की समाप्ति तक महासभा की कार्यवाही में भाग नहीं लिया।

यूएन की आलोचना क्यों ?
समय-समय पर यूएन अपनी सक्रियता, कार्य क्षमता, प्रभाविकता जैसे अनेक मुद्दों को लेकर कठघरे में खड़ा किया गया है। इसमें सबसे बड़ी आलोचना यूएन पर पांच स्थायी सदस्यों के प्रभाव को लेकर होती है। इस बात की आलोचना की जाती है कि परमाणु संपन्न संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन की शक्तियां अनियंत्रित हैं। वहीं यह आरोप लगाए जाते हैं कि यूएनएससी केवल स्थायी सदस्यों के रणनीतिक हितों और राजनीतिक उद्देश्यों को साधता है।

इसके अलावा यूएन महासभा के विपरीत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नहीं है। भारत उन देशों में शामिल हैं जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग लंबे समय से कर रहा है। पिछले महीने ही भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी जिसमें इस बात पर सहमति बनी थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार की जरूरत है ताकि यह समकालीन भू-राजनीतिक व्यवस्थाओं का बेहतर ढंग से पेश कर सके।

इस्राइल-फलस्तीन के बीच संघर्ष  यूएन ने क्या निभाई भूमिका ? 
इस्राइल और फलस्तीन के बीच संघर्ष दशकों पुराना है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया गया। इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग हुई और नतीजा निकला कि जहां यहूदियों की संख्या ज्यादा है, उन्हें इस्राइल दिया जाएगा। वहीं, जिस जगह पर अरब बहुसंख्यक हैं, उन्हें फलस्तीन दिया जाएगा। तीसरा था यरूशलम, इसे लेकर काफी मतभेद थे। यहां आधी आबादी यहूदी थी और आधी आबादी मुस्लिम। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने फैसले में कहा कि इस क्षेत्र पर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण लागू होगा।

इसके बाद के दशकों में दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए लेकिन इनमें कोई खास सहमति नहीं बन पाई। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच किसी मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई है। 2006 में हमास ने गाजा पट्टी पर कब्जा जमा लिया। तब से हमास गाजा पट्टी से इस्राइल पर खतरनाक रॉकेटों से हमले करता रहता है। वहीं इस्राइल भी इन हमलों का पलटवार करता है। इस विवाद में दोनों ओर से कई नागरिकों की जानें चली गई हैं लेकिन विवाद जस का तस बना हुआ है।

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