जन्माष्टमी पर शाहरुख का ‘कन्हैया’ अवतार, देवकी का ‘विक्रम’, यशोदा का ‘जवान’

देश को भीतर से खोखला कर रहे हथियारों के सौदागर को बेनकाब करने की कोशिशों में लगे एक फौजी के खिलाफ साजिश होती है। उस पर देशद्रोही होने का इल्जाम लगता है। पत्नी उसकी जेल में फांसी के तख्ते पर चक्कर खाकर गिर जाती है। पता चलता है वह गर्भवती है। नियम के मुताबिक बच्चे के जन्म के बाद उसके पांच साल का होने तक महिला को फांसी नहीं दी जा सकती। जेल में बच्चे का जन्म होता है। बच्चे को एक नई मां भी मिलती है। दिन जन्माष्टमी का है। शाहरुख खान की नई फिल्म ‘जवान’ रिलीज हुई है। कथा आज के वसुदेव देवकी के बेटे सरीखी ही है। लेकिन, इस फिल्म में शाहरुख खान ने और भी बहुत कुछ कहा है जो देश की मौजूदा राजनीति पर एक सजग निर्माता, एक बेहतरीन निर्देशक और एक सुलझे हुए अभिनेता की टिप्पणियां भी हैं। सुबह सात बजे के शो में परिवार के साथ आने वाले दर्शकों का नया दौर शुरू हो चुका है। पहले ‘पठान’, फिर ‘गदर 2’ और अब ‘जवान’ के रिलीज के पहले ही दिन से जश्न बन जाने का यही असली तिलिस्म है।

शाहरुख खान अपनी अभिनय यात्रा में जब जब सामाजिक मुद्दों पर चोट करने वाले किरदार करते रहे हैं, लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया है। उनकी शख्सियत में एक तरह की ईमानदारी दिखती है और इसी ईमानदारी के साथ जब वह किसी किरदार के जरिये परदे पर कुछ कहने की कोशिश करते हैं तो बात सीधे दिल तक जाती है। यहां वह उन किसानों की आत्महत्या की बात करते हैं जिन्हें चंद हजार रुपयों के लिए वही बैंक प्रताड़ित करते रहते हैं जो धनकुबेरों के लाखों करोड़ रुपये एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट्स) बताकर भूल जाते रहते हैं। और, सिर्फ किसानों की ही नहीं बात यहां देश के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा की भी है। और, ये दशा तब सुधरती है जब सूबे के स्वास्थ्य मंत्री को गोली लगने के बाद एक सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन के लिए लाया जाता है। स्वास्थ्य और कृषि आम जनता से जुड़े सीधे मामले हैं और इसके अलावा एक और मामला देश में लगातार चर्चा में रहा है, वह सियासी दलों द्वारा चुनाव से ठीक पहले रेवड़ियां बांटने का। एक देश-एक चुनाव की चर्चाओं के बीच फिल्म ‘जवान’ मतदाताओं के लिए एक रिमाइंडर सरीखी फिल्म भी है।

 

ख़ैर, ये सब तो वह बातें है जो सिनेमा और समाज का नाता समझने वाले दर्शक विचारते रहेंगे। असल में फिल्म ‘जवान’ शाहरुख खान को बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ‘पठान’ से मिली जवानी के आगे की रवानी है। ये फिल्म उन्होंने क्यों की, इस बारे में वह खुलकर बता भी चुके हैं। एटली ने उन्हें जो कहानी फिल्म ‘जवान’ की सुनाई, उसका लब्बोलुआब यही था कि एक बंदा है जो ढेर सारी बंदियों के साथ परदे पर धमाल करता है, एक्शन करता है, गाने गाता है और धमाकेदार डायलॉग बोलता है, जैसे, ‘बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर!’ यहां दोनों का डीएनए एक है। बिल्कुल शाहरुख खान की असल जिंदगी की तरह। एक फौजी की कहानी में एक अनाथ बेटे की घुट्टी मिलाकर एटली ने रोचक कहानी तैयार की है। बेटा बड़ा होता है तो एक बच्ची अपनी अनब्याही मां के पति से ज्यादा अपने लिए एक पापा तलाश करते करते उससे मिलती है। कानून की रखवाली और एक अपराधी का ये विवाह अपने साथ कुंडलियों की गड़बड़ियां भी लेकर आता है।

 

दो घंटे 46 मिनट की फिल्म के रूप में ‘जवान’ एक मास एंटरटेनर फिल्म है। फिल्म में वे सारे तत्व हैं जिनके लिए मुंबइया सिनेमा अतीत में मशहूर रहा है। ये टिपिकल मसाला फिल्म है, बस इस पर मुलम्मा एक एक्शन फिल्म का चढ़ा है और इस चमक को देखकर फिल्म देखने आए दर्शकों को शाहरुख खान कुछ ऐसी बातें भी समझा जाते हैं जिन पर सोचने के लिए दर्शक कुछ पल ही सही पर ठहरते जरूर हैं। लोगों के खातों में पैसे भेजने की सियासत देश में बहुत पुरानी नहीं है। दो हजार के नोट की भी ऐसी ही कुछ कहानी है। और, ‘जवान’ की कहानी ऐसी है कि जेल में जन्मे कन्हैया के कारनामों से भी खूब सारी दही मक्खन पाती है। यहा गोपियां रास रचाने के लिए भी हैं और धर्मयुद्ध में साथ देने के लिए भी। बतौर लेखक-निर्देशक एटली ने कहानी के तार बहुत चतुराई से बुने हैं। फिल्म इसीलिए एक दो गानों को छोड़कर कहीं धीमी नहीं पड़ने पाती।

 

शाहरुख खान को परदे पर देखना इन दिनों एक अलग ही जश्न हो चुका है। जैसा कुछ कुछ दक्षिण भारत में रजनीकांत, विजय या दूसरे सितारों की फिल्मों की रिलीज के समय होता रहा है, वैसा बैंड बाजा अब शाहरुख की फिल्मों की रिलीज पर भी बजने लगा है। और, शाहरुख शोहरत के इस नए अध्याय का भरपूर मजा ले रहे हैं। उनका परदे पर चलने का अंदाज एक नई बदमाशी का मिश्रण पाकर अलग ही अंदाज पा चुका है। वह जमाने की फिक्र को धुएं में उड़ा देने वाला रीपैकेज्ड नायक है। बीती बातें उसे याद नहीं और जब याद आती हैं तो सामने वाले का समय बीतने लगता है। विक्रम और आजाद दोनों किरदारों में शाहरुख ने कमाल का काम किया है। और इन किरदारों का ही कमाल है कि हाल में रिलीज हुई फिल्मों में अगर किसी एक फिल्म में विजय सेतुपति जैसे सितारे के किरदार का ऐसा मान मर्दन हुआ है तो वह फिल्म ‘जवान’ ही है।

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