सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणाी,हिंदू अविभाजित परिवार के मुखिया को संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) के ‘कर्ता’ को परिवार की संपत्ति को बेचने या अलग करने का अधिकार है, भले ही परिवार के किसी नाबालिग का अविभाजित हित हो। अदालत ने कहा कि इसका कारण यह है कि एक एचयूएफ अपने कर्ता या परिवार के किसी वयस्क सदस्य के माध्यम से एचयूएफ संपत्ति का प्रबंधन करने में सक्षम है।
अदालत ने इस संबंध में नारायण बल बनाम श्रीधर सुतार (1996) के फैसले का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि उस फैसले में कर्ता और एचयूएफ की स्पष्ट व्याख्या दी गई है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ऋण वसूली न्यायाधिकरण में कार्यवाही को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी
मद्रास हाईकोर्ट ने भी न्यायाधिकरण के फैसले को बरकार रखा था। इसके बाद एनएस बालाजी के सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिकाकर्ता बालाजी ने दावा किया कि विचाराधीन संपत्ति एक संयुक्त परिवार की संपत्ति या हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) की संपत्ति थी, जिसे उसके पिता ने गारंटर के रूप में गिरवी रखा था।
शीर्ष अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के पिता, एचयूएफ के ‘कर्ता’ के रूप में एचयूएफ की संपत्ति गिरवी रखने के हकदार थे। एचयूएफ के अन्य सदस्यों को इसमें सहमति देने वाले पक्ष होने की आवश्यकता नहीं है।
अलगाव के बाद एक समान उत्तराधिकारी (कोपार्सनर) उस स्थिति में ‘कर्ता’ के कार्य को चुनौती दे सकता है, यदि अलगाव कानूनी आवश्यकता या संपत्ति की बेहतरी के लिए नहीं हो। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में दखल का कोई कारण नहीं बनता।