इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला, पत्नी कमा रही हो तो भी गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता पति

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी कमाई कर रही हो तो भी गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, बूढ़े मां-बाप व पत्नी, बच्चों के गुजारे भत्ते का केस वर्षों लटकाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस की अनदेखी की जा रही है, केस समय से तय नहीं होता। इससे न्यायिक व्यवस्था से जन विश्वास डगमगा रहा है।

कोर्ट ने कहा, अदालतों का कार्य ईश्वरीय है। लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करना और कानून का शासन स्थापित करना अदालतों की जिम्मेदारी है। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने गुजारे भत्ते के लिए 22 अगस्त, 2017 से 39 तारीखों की सुनवाई के बाद भी इंतजार करने वाली मुजफ्फरनगर की पारुल त्यागी की याचिका निस्तारित कर दी है।

परिवारिक अदालत ने पति गौरव त्यागी को 20 हजार रुपये महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। निष्पादन अदालत इसका पालन नहीं करवा पा रही है। कोर्ट ने प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों के सभी जिला जजों को परिवार अदालत के जजों के साथ बैठक करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि जो जज सुप्रीम कोर्ट द्वारा रजनेश केस में दी गई गाइडलाइंस का पालन नहीं कर रहे हैं, उनकी रिपोर्ट महानिबंधक को भेजें। महानिबंधक रिपोर्ट अपनी टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश को भेजें। लापरवाह जज की सेवा पंजिका में इसकी प्रविष्टि की जाए।

जिला जज, परिवार अदालतों के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की समीक्षा कर प्रगति रिपोर्ट तैयार करें। जिला जज व प्रधान न्यायाधीश गंभीर उलझे मामलों को जिला मानीटरिंग कमेटी के समक्ष पेश करें। साथ ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बार एसोसिएशन के सहयोग से वर्कशाप चलाएं। इसमें वकीलों को मुकदमे तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जाए और जागरूकता अभियान चलाया जाए।

कोर्ट ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव सहित सभी जिला जजों, प्रधान न्यायाधीशों, जिलाधिकारियों व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को भेजने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से कहा कि यदि पत्नी कमाई कर रही है तो केवल इसी आधार पर गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत देखेगी कि क्या उसकी आय गुजारे के लिए पर्याप्त है अथवा नहीं?

पति का कहना था कि पत्नी आईआईटी उत्तीर्ण है, गुजारा कर सकती है। पत्नी का कहना था कि वह बेरोजगार है। मायके में रह रही है। इसलिए पति से गुजारा भत्ता दिलाया जाए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत  परिवारिक अदालत ने पत्नी की अर्जी पर 20 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी खारिज हो गई, किंतु भुगतान नहीं किया गया तो पत्नी ने धारा 128 में भत्ता दिलाने की अर्जी दी। भुगतान नहीं कराया जा सका तो हाई कोर्ट की शरण ली।

 

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