मुझे लड़की मत कहाे- मैं बेटी नहीं बेटा हूं, कॉल्विन अस्पताल में आ चुके जेंडर डिस्फोरिया के कई मामले

प्रयागराज।  मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय (कॉल्विन) में ऐसे 10 से अधिक मामले आ चुके हैं, जिसमें लड़कियां खुद को बेटी नहीं, बल्कि बेटा कहलाना चाहती हैं। बेटे जैसा बनकर रहना चाहती हैं। उनकी इस आदत से घर वाले बेहद परेशान हैं। इलाज करा रहे हैं। मनोचिकित्सकों के मुताबिक यह मानसिक रोग जेंडर डिस्फोरिया है। ऐसे मरीजों की काउंसलिंग की जाती है। तनाव न घटे तो एंटी डिप्रेशन दवाएं भी दी जाती हैं।

ऐसी लड़कियां जेंडर परिवर्तन कराकर लड़का बनने की जिद भी करती हैं। उन्हें लड़कियों से दोस्ती करना या उनके साथ रहना भी नहीं सुहाता। इससे घर का माहौल खराब होता है। डॉक्टरों के मुताबिक यह एक मनोरोग है, इसलिए उनकी जिद तात्कालिक ही होती है। कुछ माह की काउंसिलिंग करके इस मनोवृत्ति को बदला जा सकता है। दरअसल, जेंडर चेंज आसान नहीं है।

इस प्रक्रिया में तकरीबन डेढ़ साल का समय लगता है। इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक, प्लास्टिक सर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञ का पैनल मरीज की काउंसिलिंग करता है। काउंसिलिंग के आठ से दस सेशन होते हैं। मनोकित्सक की मुहर के बाद ही जेंडर चेंज की प्रक्रिया शुरू होती है। करीब छह माह तक हार्मोंस बदलने की प्रक्रिया चलती है। फिर, सर्जरी की जाती है, जिसकी प्रक्रिया बेहद जटिल है। प्रयागराज में अभी तक सिर्फ एक ही जेंडर चेंज हुआ है। यह काम कठिन है और प्रक्रिया बेहद जटिल। सर्जरी के पहले मरीज की लंबी काउंसिलिंग की जाती है। साल भर में 10 से अधिक मामले आ चुके हैं। लड़की जिद पकड़े होती है कि उसे तो बस लड़का ही बनना है। असल में यह मनोरोग है, जिसका इलाज संभव है।

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